राजमोहनी देवी गांधीवादी विचार धारा वाली एक समाज सेविका थी जिन्होंने बापू धर्म सभा आदिवासी मण्डल की स्थापना की। ये संस्था गोंडवाना स्थित आदिवासियों के हित के लिएकार्य करती है। वे स्वयं एक आदिवासी जाति मांझी में जन्मी थी|
१९५१ के अकाल के समय गांधीवादी विचारधाराओ व आदर्शों से प्रभावित होकर इन्होंने एक जनआंदोलन चलाया जिसे राजमोहनी आंदोलन के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य आदिवासी महिलाओं की स्वतन्त्रता वस्वायत्ता निश्चित करना था साथ ही अंधविश्वास और मदिरा पान की समस्याओं का उन्मूलनथा। धीरे धीरे इस आंदोलन से ८०००० से भी ज्यादा लोग जुड़ गए। बाद में ये आंदोलन एकअशाष्कीय संस्थान के रूप में सामने आया। इस संस्थान के आश्रम न सिर्फ छत्तीसगढ़बल्कि उत्तर प्रदेश और बिहार में भी है।
सन १९८९ को भारत सरकार द्वारा इन्हे भारत के चतुर्थ सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्मश्री" से सम्मानित किया गया। उनके जीवन पर सीमा सुधीर जी द्वारा एक किताबकी रचना की गयी है जिसका शीर्षक है "सामाजिक क्रांति की अग्रदूत राजमोहनीदेवी" जिसका प्रकाशन छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादेमी द्वारा सन 2013 में किया गया।
उनके नामपर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा संचालीत "राजमोहनीदेवी कॉलेज ऑफ एग्रिकल्चर अँड रिसर्च स्टेशन" व "राजमोहनी देवी पीजीमहिला महाविद्यालय" अंबिकापुर में स्थित है।